आज़ादी
क्या है आज़ादी और क्यों को आय दिन मांगते रहे ते है ... क्या मतलब है आज़ादी का का और क्यो हमें आजादी और किस से चाहिए आजादी। आजादी एक ऐसा शब्द जो आये दिन कभी न कभी हमने किसी न किसी विपक्षी या लेफ्ट पार्टी के नेताओं या उनके द्वारा प्रायोजित आंदोलन या धरनो में सबसे अधिक बार यूज़ होता हैं... हर पार्टी को बस आज़ादी चाहिए की वो अपने हिसाब से देश में सब कुछ कर सके जो उसके मन में हो वो वो कर सके ,, देश की सरकार उसके खिलाफ कुछ ना बोले और न कुछ करे। . इसलिए आये दिन सबको आज़ादी चाहिए। .. जबकि इसके उल्टा जब उनकी सरकार हो तो उनको ये सब बहुत ही बुरा लगता था अगर कोई सरकार कर काम में ऊँगली करे या उसमे कुछ बोले...
आज़ादी क्यों : बोलने को एक छोटा शब्द लेकिन मतलब बहुत बड़ा अगर इसको बोले के मांगने वालो को इसका मतलब पता होता तो शायद वो ऐसे नहीं बोलते जैसे वो चीख के बोलते है आज़ादी। .. सबसे बड़ी बात की देश अब गुलाम नहीं है जो आपको किसी से आज़ादी मांगने की नौबत आये। . और अगर कोई चीज या कोई बात आपको अच्छी नहीं लगती है वो उसको विरोध करो। के ये आये दिन आज़ादी आज़ादी बोले के फालतू की नौटंकी करते हो..किसे से आपको आज़ादी चाहिए जब से बीजेपी सरकार तव से सबको आज़ादी चाहिए उससे पिछली सरकर ने क्या देश का नाम बहुत उच्चा किया था क्या जो आज़ादी नहीं मांगते थे.
प्रोयोजित आंदोलन : देश में कभी न कभी आंदोलन होते रहे है और होते भी रहेंगे लेकिन वो सब एक मुद्दे पर होते थे.. लेकिन आज के टाइम आंदोलन भी फिक्स्ड होते हैं। की अभी हमको ये करना इसके बाद हम आंदोलन करंगे इसे हमने मीडिआ में बहुत ज्यादा फोकस और नाम मिले , ताकि जो हम करना चाहते है उसको सुनयोजित तरीके से देश के हर कोने तक जा सके.. हर सबको एक ही राटा रटाया बोल आज़ादी देश के प्रधानमंत्री से देश के होम मिनीस्टर से आज़ादी चाहिए अरे भाई उनको इस देश की जनता ने वोट देके बेजा हैं कोई पैसे देकर या जबरदस्ती नहीं बैठाया हैं.. और उन्होंने क्या गलत कर दिया जो उनको हर बात पे आके सफाई देनी पड़े जैसे देश का प्रधानमंती न हो गली मोहले का सभासद हो.. की मेरी गली नहीं बनी इसका प्रधानमत्री जी जवाब दे. की मेरे घर आज खाना नहीं बना होम मिनिस्टर इस्तीफा दे. ऐसा कैसे हो सकता हैं.
गांधीवादी ढोंग : सब अपने आपको गाँधी जी के मार्ग पे चलने वाला बोलते है तो फिर आये दिन ये मार पिट और हिंसा की जाती है, गाँधी जी ने विरोध किया हर उस निति का जो उन्हें सही नहीं लगी लेकिन कभी हिंसा का मार्ग नहीं चुना। .गाँधी जी मानते सब है लेकीन कोई उनकी रहा पे चलने को तैयार नहीं है.